লোকনাথ ব্রহ্মচারী বাবার বাণী



বাবা লোকনাথ একজন সিদ্ধ পুরুষ। তিনি মানবের কল্যাণে অসংখ্য অমৃত 
বাণী দিয়ে গেছেন যা অনুসরণ করলে মানব জাতি শান্তি ও স্বস্তি পাবে, মুক্তির 

পথ তার খুলে যাবে...।
আসুন হৃদয়ে ধারণ করি বাবার অমৃত বাণী।
 
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  1. সত্যের মতো পবিত্র আর কিছুই নেই। সত্যই স্বর্গমনের একমাত্র সোপানস্বরূপ, সন্দেহ নেই।
  2. যে ব্যক্তি সকলের সুহৃদ(বন্ধু), আর যিনি কায়মনোবাক্যে সকলের কল্যান সাধন করেন, তিনিই যথার্থ জ্ঞানী।
  3. গরজ করিব, কিন্তু আহাম্মক (নির্বোধ) হবি না। ক্রোধ করিব কিন্তু  ক্রোধান্ধ হবি না।
  4. দেখ-অর্থ উপার্জন করা , তা রক্ষা করা, আর তা ব্যয় করবার সময়   বিষয় দু:খ ভোগ করতে হয়। অর্থ সকল অবস্থাতেই মানুষকে কষ্ট দেয়।   তাই অর্থ ব্যয় হলে বা চুরি হলে তার জন্যে চিন্তা করে কোন লাভই হয়   না।
  5. যে ব্যক্তি কৃতজ্ঞ, ধার্মিক, সত্যাচারী, উদারচিত্ত, ভক্তিপরায়ন, জিতেন্দ্রিয়, মর্যাদা রক্ষা করতে জানে, আর কখনো আপন সন্তানকে পরিত্যাগ করে না, এমন ব্যক্তির সঙ্গেই বন্ধুত্ব করবি।
  6. ওরে, সে জগতের কথা মুখে বলা যায় না, বলতে গেলেই কম পড়ে যায়। বোবা যেমন মিষ্টির স্বাদ বলতে পারে না, সেই রকম আর কি!
  7. আমিও তোদের মতো খাই-দাই, মল-মূত্র ত্যাগ করি। আমাকেও তোদের   মতই একজন ভেবে নিস। আমাকে তোরা শরীর ভেবে ভেবেই সব মাটি করলি। আমি যে কে, তা আর কাকে বোঝাবো, সবাই তা ছোট ছোট  চাওয়া নিয়েই ভুলে রয়েছে আমার প্রকৃত আমি কে।
  8. সমাধির উচ্চতম শিখরে গিয়ে যখন পরমতত্ত্বে পৌঁছালাম, তখন দেখি   আমাতে আর অখিল ব্রহ্মান্ডের অস্তিত্বে কোন ভেদ নেই। সব মিলেমিশে একাকার।
  9. মুসলমান কথাটা এসেছে ‘মুছল্লাম ইমাম’ কথা থেকে। এর অর্থ হলো-    ষোল আনা ধর্ম যার মধ্যে প্রতিষ্ঠিত সে কেবল মুসলমান। আমাতে ষোল   আনা ধর্ম আছে, তাই আমি মুসলমান।
  10. আমি বহু পাহাড়-পর্বতে ঘুরেছি কিন্তু ব্রাহ্মণ দেখলাম তিনজন। মক্কায়   আব্দুল গফুর, ভারতে ত্রৈলঙ্গস্বামী এবং আমি নিজেকে। 
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  51. রণে, বনে, জলে, জঙ্গলে যখনই বিপদে পড়বি, আমাকে স্মরণ করবি, আমিই রক্ষা করবো।
  52. অন্ধ সমাজ চোখ থাকতেও অন্ধের মতো চলছে।
  53. এই বিরাট সৃষ্টির মধ্যে এমন কিছু নেই যাকে উপেক্ষা করা চলে বা ছোট ভাবা যায়। প্রতিটি সৃ্ষ্টি বস্তু বা প্রাণী নিজ নিজ স্থলে স্বমহিমায় মহিমান্বিত হয়ে আছে জানবি।
  54. যা মনে আসে তাই করবি, কিন্তু বিচার করবি।
  55. যে কর্ম মনে তাপের সৃষ্টি করে তাই পাপ। যে কর্মের মধ্য দিয়ে আত্মসচেতন বা শান্তির ভাব মনকে ভরিয়ে তোলে তাই পুণ্য এবং স্বর্গতুল্য।
  56. ধার্মিক হতে চাইলে প্রতিদিন রাতে শোবার সময় সারাদিন কাজের হিসাব নিকাশ করবি, অর্থাৎ ভাল কাজ কি করেছিস এবং মন্দ কাজ কি করেছিস, সেটা ভেবে মন্দ কাজ যাতে আর না করতে হয় তার জন্য দৃঢ় প্রতিজ্ঞ হবি।
  57. দেখ-যেখানে ত্যাগ নেই, আছে মোহ ও আসক্তি সেখানেই যত দু:খ, দৈন্য ও অশান্তি।
  58. যারা ধর্ম নেই মনে করে সাধুগণকে উপহাস করে, আর ধর্মের প্রতি অশ্রদ্ধা প্রকাশ করে, তারা নি:সন্দেহে বিনাশ প্রাপ্ত হয়।
  59. সচেতন হতে হবে। অচেতনাই জীবনের ধর্ম হয়ে দাঁড়িয়েছে। নিরন্তর অভ্যাস এবং চেষ্টার ফলে তাকে সচেতনায় রূপান্তরিত করতে হবে।
  60. কাম, ক্রোধ সব রিপুই অবচেতন মনের স্তরে স্তরে সুপ্ত অবস্থায় রয়েছে। সুযোগ পেলেই তারা প্রকাশ হয়, কারণ মানুষ তাদের অস্তিত্ব সম্বন্ধে সচেতন হয়। অচেতন মন রিপুদের অবাধ ক্রীড়াক্ষেত্র। 
  61. মন যা বলে শোন, কিন্তু আত্মবিচার ছেড়ো না। কারণ মনের মতন প্রতারক আর কেউ নেই। মহাপুরুষদের বাক্য, শাস্ত্র বাক্যে শ্রদ্ধাবান না হলে প্রকৃত আত্মবিচার সম্ভব নয়। 
  62. আত্ম-বিশ্লেষণের ধারাটিকে সদাজাগ্রত রাখতে না পারলে, কামগন্ধহীন শুদ্ধ মনের জগতে প্রবেশ করা যায় না। কাম কলুষিত বিক্ষিপ্ত চিত্তে ধ্যান বা সমাধিও সম্ভব নয়। 
  63. ক্রোধ ভাল, কিন্তু ক্রোধান্ধ হওয়া ভাল নয়। 
  64. গুরু প্রদত্ত মন্ত্রের শুদ্ধাশুদ্ধ বিচার করা শিষ্যের কর্ম নয়। গুরু যা বলেছেন বিনা দ্বিধায় তা জপ করে যাওয়াই শিষ্যের কর্তব্য। 
  65. বিদ্যা, তপস্যা, ইন্দ্রিয়সংযম ‍ও লোক পরিত্যাগ ছাড়া কেউই শান্তিলাভ করতে পারে না।
  66. অহং চলে গেলে নিজের মনই নিজের গুরু হয়, সৎ ও অসৎ বিচার আসে। জ্ঞানের সঙ্গে ভক্তির মণিকাঞ্চন যোগ হলে শ্রদ্ধা হবে তোদের আশ্রয়, শ্রদ্ধা হবে তোদের বান্ধব এবং শ্রদ্ধাই হবে তোদের পাথেয়। 
  67. ইচ্ছায় হোক, অনিচ্ছায় হোক, যে সন্তান মায়ের আদেশ পালন করে, ভগবান তার মঙ্গল করেন। 
  68. দীন দরিদ্র অসহায় মানুষের হাতে যখন যা দিবি তা আমিই পাব; আমি গ্রহণ করবো। 
  69. দু:খ দরিদ্রতায় ভরা সমাজের দু:খ দূর করার জন্য সর্বদা চেষ্টা করবি। 
  70. তোরা যদি দীর্ঘায়ু হতে চাস্ তাহলে তোদের সদাচারী, শ্রদ্ধাশীল, ঈর্ষাহীন, সত্যবাদী, ক্রোধবিহীন ও সরল স্বভাব হতে হবে। ..... আপডেট চলবে

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